अगर आपने पहला भाग अब तक नहीं पढ़ा तो आप यहाँ से पढ़ सकते हैं।
थोड़ा बहुत लिखने की कोशिश है। लेकिन कहानी में सस्पेंस बना रहेगा।
राधा की शादी में अब कुछ ही दिन थे और राधा की पढाई भी पूरी होने वाली थी। राधा ने नौकरी के लिए कई फॉर्म भी भर रखे थे। उसकी भी इच्छा थी की सरकारी सेवा में रहते हुए समाज की सेवा की जाये।
बेटी राकेश छुट्टी लेकर आना वाला है मैं चाहता हों की इन्ही छुट्टिओं में तुम्हारी शादी हो जाये। पिताजी बोले।
ओह्हो पिताजी आपको इतनी जल्दी क्यों है मेरी शादी की ,मैं अपने पैरों पर खड़ी होना चाहती हूँ। मुझे किसी पर निर्भर नहीं रहना है।
और एक दिन दरवाजे पर कुण्डी की आहट हुई। बेटी देखो कौन है ?पिताजी ने आवाज दी। राधा ने दरवाजा खोला तो देखा की वहां लम्बे कद का एक लड़का खाकी वर्दी और सर पर टोपी पहन कर हाथ में पत्र लेकर खड़ा था।
"जी आपका ये पत्र है " वह बोला। राधा को कुछ सूझ नहीं रहा था कि वह क्या जवाब दे। वह एक दम से अवाक रह गयी। तब तक वो पोस्टमैन चला गया। राधा ने पत्र खोल कर देखा तो उसमे क्लर्क की परीक्षा का एडमिट कार्ड था। ये वही फॉर्म था जो राधा ने दो महीने पहले लेटर बॉक्स मे डाला था। राधा की ख़ुशी का कोई ठिकाना नहीं था। उसे एक अजीब सी ख़ुशी हो रही थी और वो अंदर ही अंदर मुस्कुरा रही थी। उसे खुद भी नहीं पता था की उसे हुआ क्या है। कुछ तो एडमिट कार्ड की ख़ुशी थी और कुछ शायद किसी को देखकर।
"पिताजी मैं आपकी पेंशन लेने पोस्ट ऑफिस जा रही हूँ ""अरे बेटी नहीं एक साथ ही ले आएंगे अब तुम्हरी शादी में भी जरुरत है "
लेकिन राधा कहाँ मानने वाली थी पिताजी से फॉर्म पर हस्ताक्षर करवाके डाकघर की तरफ चल पड़ी।
उसकी आँखें वह पर किसी को ढूढ़ रही थी। उसने आखिर कार हिम्मत करके पूछ ही लिया।
"चाचा ये हमारे गाँव का पोस्टमैन बदल गया है क्या ?"राधा ने चाचा से पूछा।
"हाँ बेटी वो कुछ ही दिन पहले आया है नई भर्ती हुई है "वो वहां ऊपर है।
राधा के कदम ऊपर की तरफ बढ़ चले। "हमारी चिट्ठी आयी है क्या ?" "जी कल ही तो आयी थी वो मैं दे आया था "
अब राधा का दिल जोर जोर से धड़कने लगा था और वापिस जाते हुए पैर लड़खड़ाने लगे थे।
आगे के लिए जारी रहेगी..........................
दोस्तों आगे की कहानी आपको कुछ सी समय बाद बताएंगे तब तक आप हमे कॉमेंट करके बताये की आपको अब तक की कहानी कैसी लगी।