दोस्तों आइये चलते हैं वहीँ पुराने दिनों में और सुनते हैं डाकिया डाक लाया
उस दौर में जहाँ डाकिया डाक नहीं बल्कि भावनाएं लाता था ,वह केवल डाकिया नहीं होता था बल्कि परिवार का सदस्य होता था ,उस दौर में जब डाकघर की पहचान केवल डाकिया से ही होती थी। उस दौर में जब हंसी ख़ुशी ग़म और प्यार चिट्ठी में छिपा होता था। तकनीक के आभाव में डाक विभाग ने एक अहम किरदार निभाया है। तो आइये चलते हैं पुराने दिनों में।