चिटि्ठयों में लिखे किस्सों-अफसानों की बातें तो खूब सुनी-पढ़ी जाती हैं लेकिन लेटर बॉक्स की कहानी शायद ही जेहन में आती हो।
चिटि्ठयों में लिखे किस्सों-अफसानों की बातें तो खूब सुनी-पढ़ी जाती हैं लेकिन लेटर बॉक्स की कहानी शायद ही जेहन में आती हो। आज के डिजिटल दौर में जब चिट्ठी लिखना, उनका आना-जाना बेहद कम हो गया है, ऐसे दौर में करेली के मोहद गांव में एक घर की दीवार पर लगा लेटर बॉक्स पत्रों से लगाव की अनूठी कहानी सुनाता है। उस घर में रहने वाले स्व. सुरेंद्र सिंह हर दिन 25-30 पत्र लिखते थे इसलिए डाक विभाग ने एक लेटर बॉक्स उनके घर की दीवार पर ही लगवा दिया था। मोहद करेली से 5 किमी दूर है। सुरेंद्र सिंह के बेटे विक्रम सिंह बताते हैं कि उनके पिता को सभी लोग भैयाजी के नाम से पुकारते थे। भैयाजी हर दिन 25 से 30 पोस्टकार्ड लिखते थे और इतनी ही संख्या में उनके पास देश-प्रदेश की विभिन्न जगहों से पत्रपत्रिकाएं आती थीं।
उनके इस शौक से डाक विभाग भी परिचित था। एक दौर में जब पोस्टकार्ड मिलना मुश्किल होता था तो विभाग गांव के पोस्टमैन राजेश सोनी के जरिए उन्हें एक-एक हजार खाली पोस्टकार्ड भिजवा देता था। भैयाजी का अपने साहित्यकार मित्र स्व. डॉ. रामनारायण वर्मा से भी हर दिन पत्रों के जरिए संवाद होता था। यह सिलसिला भी करीब डेढ़ दशक तक चलता रहा। पहले भैयाजी को पोस्टकार्ड डालने गांव के ही डाकघर जाना पड़ता था इसलिए विभाग ने घर की दीवार पर लेटर बॉक्स लगवा दिया। यह लेटर बॉक्स आज भी मौजूद है। हालांकि अब इसमें इक्का- दुक्का पत्र ही डाले जाते हैं।