आज के समय में यह बहुत बड़ा सवाल है ,इस सम्बन्ध में माननीय सुप्रीम कोर्ट ने एक फैसला भी दिया है तो आइये उसी के बारे में बात करते हैं।
इस बारे में याचिका भारतीय राजस्व सेवा के पूर्व अधिकारी और सुप्रीम कोर्ट के वकील शिवकांत झा ने दाखिल की थी। शिवकांत झा ने अपनी दिल की बीमारी का इलाज दिल्ली में फोर्टिस एस्कॉर्ट्स और मुंबई के जसलोक अस्पताल में कराया था. लेकिन CGHS अधिकारियों ने इलाज में उस वक्त खर्च हुई 13 लाख 80 हज़ार की रकम रिइंबर्स करने से इनकार कर दिया था. क्योंकि ये अस्पताल CGHS पैनल में नहीं थे. मामला अदालत और फिर सबसे बड़ी अदालत में आया.
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अदालत ने कहा कि CGHS की तय दरों से ज़्यादा खर्च होने पर पूरी रकम का पुनर्भुगतान न होना सरासर अन्याय है. ये कर्मचारियों के बेहतरीन इलाज कराने के अधिकारों का भी हनन है. CGHS को भुगतान करना ही होगा और वो भी उस अस्पताल की दर पर.
कोर्ट ने कहा कि जब ये साबित हो जाए कि सरकारी कर्मचारी ने किसी अस्पताल में इलाज कराया है तो फिर पेमेंट कोई नहीं रोक सकता, न ही कम कर सकता है.
याचिकाकर्ता ने 2003 में जब निजी अस्पतालों में 13.80 लाख रुपए खर्च कर अपना इलाज करा लिया तो सरकार की केंद्रीय सरकार स्वास्थ्य योजना ने बिल भुगतान से साफ इंकार कर दिया. उस वक्त कहा गया कि वो अस्पताल तो पैनल में था ही नहीं. बहुत भाग दौड़ की तो 5 लाख 85 हज़ार रुपए का भुगतान दिया. योजना का कहना था कि रिइंबर्स का आधार फिक्स रेट के आधार पर ही होना चाहिए. बेंच ने कहा कि योजना के तहत दी जा रही सुविधाओं पर अधिकारियों का ऐसा रवैया अमानवीय है.
लेकिन माननीय सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा की ये फैसला सिर्फ इस केस तक ही सीमित है ,इसका मतलब अगर किसी और कर्मचारी के साथ ऐसा होता है तो उसे भी केस फाइल करना होगा
लेकिन माननीय सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा की ये फैसला सिर्फ इस केस तक ही सीमित है ,इसका मतलब अगर किसी और कर्मचारी के साथ ऐसा होता है तो उसे भी केस फाइल करना होगा