ताजनगरी आगरा से 130 किमी दूर बुलंदशहर के कसेर कलाँ गाँव में 85 बरस के कादरी ने अपनी उस मरहूम बेगम की याद में ताजमहल बनवाया था जिसे वह बेइन्तेहा प्यार करते थे। कादरी डाक विभाग में पोस्टमॉस्टर रह चुके थे। कादरी ने इस ताजमहल को बनवाने में अपनी जिंदगी की सारी जमापूँजी करीब 23 लाख रूपये खर्च कर दिये। लेकिन ताजमहल का ढाँचा संगमरमरी हो पाता उससे पहले ही उनकी रकम खत्म हो गयी।



लेकिन भगवान को कुछ और ही मंजूर था नवंबर 2018 को देर रात एक सड़क दुर्घटना में प्यार को एक अलग ही नाम देने वाले इस शाहजहां की मृत्यु हो गयी।
"न ये शीशमहल है न कोई ताजमहल
है यादगार-ए-मुहब्बत..
ये प्यार का है महल
यहाँ पर चैन से सोया है
दिलनशीं मेरा उड़ाके लायी है गुलशन से मेरा फूल अजर..."

2012 में की थी शुरूआत
2012 से कादरी ने अपने घर के पास बने खेत में ताजमहल बनवाने की शुरूआत की थी। कादरी ने इस इमारत के निर्माण में स्थानीय राजमिस्त्रियों से काम कराया। ताजमहल की तस्वीर से प्रेरणा लेकर कादरी ने अपनी पत्नी तजुम्मली बेगम के मकबरे को शक्ल दी तो लोग इसे ताजमहल कहने लगे। इस ताजमहल की चर्चाऐं देश-प्रदेश से लेकर सात समंदर पार तक पहुँची और इसे चाहने वाले सैलानी और विदेशी पत्रकार यहाँ आने लगे।

संगमरमर के लिए जोडे 74 हजार
2014 में कादरी के पास जब रूपये खत्म हो गये तो उन्होने इस इमारत पर संगमरमर लगवाने के लिए अपनी 10 हजार रूपये की पैंशन में से रकम जुटानी शुरू की। पेट भरने के बाद जो रूपये पैंशन में से बचते थे उन्हें जोड़कर कादरी ने अब तक 74 हजार रूपये जमा किये थे । लेकिन ताजमहल को संगमरमरी होने में करीब 10 लाख रूपये का खर्चा आयेगा।
कादरी अब तक 450 गजलें लिख चुके थे।
फैजुल उर्दू, हिंदी और फारसी के जानकार फैजुल हसन कादरी अपनी बेगम के लिए अब तक 450 से ज्यादा गजलें लिख चुके थे। वह इन गजलों का प्रकाशन ऊर्दू और फारसी के अलावा हिंदी में भी कराना चाहते थे।लेकिन भगवान को कुछ और ही मंजूर था नवंबर 2018 को देर रात एक सड़क दुर्घटना में प्यार को एक अलग ही नाम देने वाले इस शाहजहां की मृत्यु हो गयी।
"न ये शीशमहल है न कोई ताजमहल
है यादगार-ए-मुहब्बत..
ये प्यार का है महल
यहाँ पर चैन से सोया है
दिलनशीं मेरा उड़ाके लायी है गुलशन से मेरा फूल अजर..."